Wednesday 10 October 2018

तीर्थ-यात्रा। teerth yatra

 बनारस कहने को तो बाबा विश्वनाथ और घाटों की नगरी है, घाटों से ज्यादा मंदिर और पंडे हैं, इन्ही मंदिरों में एक था, स्वामी हरदेव का मंदिर और मंदिर में पुजारी थे,शंकर जी त्रिवेदी।

पंडित जी थे तो जाति के ब्राह्मण, पर ज्ञान एक भी वेद का नहीं था, पंडिताई विरासत में मिली थी और पंडित जी की तोंद, शायद हिमालय की चोटी हो रही थी ।चाय के लिए शायद मेज की जरूरत नहीं थी, उसके लिए तो शायद उनका पेट ही काफी था। चलते थे तो लगता था छोटा हाथी आ रहा है। खैर उनका पेट आकर्षण का केंद्र तो था ही शायद आकर्षण का भी। बच्चे उनको तोन्दुमल कह कर  चिढ़ाते। पंडित जी मैं एक खासियत और थी, शायद उन्होंने कंजूसी में m.a. कर रखा था। ब्रह्मा चमड़ी और दमड़ी में एक को चुनने को कहते तो वह हमेशा दमड़ी ही चुनते। एक धोती में दो-तीन साल आराम से काट देते। कहीं से धोती दान में मिलती तो फूल कर कुप्पा हो जाते
      खैर समय बीतता गया। मां बाप स्वर्ग सिधार गए तो पंडिताइन ने कहा कि आपकी 7 पुश्तो में कोई भी गया जी में पिंड दान  को नहीं गया, आपको जाना चाहिए।बड़ी मनौती के बाद पंडित जी तैयार हुए। पंडिताइन ने चना और थोड़ा गुड बांध दिया क्योंकि सफर लंबा था, तो थोड़े पैसे रख लिए। पैरों में वही 15 साल पुराने जूते पहने और निकल पड़े सफर के लिए। गांव से निकलते ही जूते डंडे में टांग लिए कि कहीं घिस ना जाएं। रास्ते में धर्मशाला में रुकते और मुफ्त का भोजन मिलता तो डट कर खा लेते है, लोग भी पंडित को भोजन करा कर अपने को धन्य समझते, दान देते अलग से। खैर किसी तरह गिरते-पड़ते सफर कटता रहा और पंडित जी पहुंच गए गया जी के एक गांव शरीफपुर में। कहने को गांव का नाम तो शरीफपुर, परंतु शायद गाँव वालों में शराफत का एक अंश न था। गांव के बच्चे तो बच्चे, मर्द सब निरा उज्जड। पंडित जी ने रात  किसी तरह पेड़ के नीचे काटी। भोर होते ही तालाब में नहाने चल दिये। अभी कुछ दूर चले ही थे कि गांव के कुत्तों ने अजनबी देख भौंकना शुरू कर दिया। पंडित जी के तो होश फाख्ता। अपनी धोती पकड़कर किसी तरह भागना शुरू कर दिया। अंधेरा था, कुछ दिख नहीं रहा था। साथ ही पंडित जी का पेट दौड़ने नहीं  दे रहा था। एकाएक पंडित जी का पैर फिसला और कटे पेड़ की तरह नाले में गिरे, छपाक से। लगा जैसे बरगद का पेड़ गिरा हो। पंडित जी कभी संभल कर उठते तो कभी गिर पड़ते।सारा शरीर कीचड़ से सन गया । खैर किसी तरह पंडित जी बाहर निकले और फिर चल दिए तालाब की ओर। रह-रहकर पंडित जी को अपना बनारस का घाट याद आ रहा था। सोचने में मगन, आज बनारस में होता, तो गंगा मां मैं सौ-सौ डुबकी लगाता। तभी उनको औरतों के चिल्लाने की आवाज सुनाई दी, ध्यान देकर सुना तो औरतें चिल्ला रही थी कि मलिच्छ बाबा लौट आये, मलिच्छ बाबा लौट आये। औरतें आ-आकर कर पंडित जी के पैरों में गिर पड़ी और कहने लगी बाबा आज वर्षों बाद आए हैं, आपको गांव में तो चलना पड़ेगा। उनमें से एक बूढ़ी औरत बोली, बाबा बहुत ज्ञानी हैं, हठयोगी हैं, केवल कीचड़ में नहाते हैं ,चूना खाते हैं।सब सुनते ही पंडित जी के काटो तो खून नहीं। भागने का बहुत प्रयास किया, पर सब बेकार। तब तक गांव की पूरी भीड़ उमड़ पड़ी। पंडित जी को कोई सुनने को तैयार  नहीं। अब पंडित जी का  आसन गांव के बीचों बीच लगाया गया। कुछ ने कहा -अब बाबा के नहाने का समय हो गया है।पंडित जी को कीचड़ स्नान कराकर सब पुण्य कमाएंगे। गांव के 10 12 लोग गए और बीसों बाल्टी कीचड़ ले आए और शुरू हुआ कीचड़ स्नान। बूढ़े-बच्चे और औरतें, सब लगे लोटे से स्नान कराने। ज्यादा भक्त लोग तो पूरी बाल्टी ही उड़ेल देते। पंडित जी का तो हाल बुरा हो रहा था चारों और कीचड़ और बदबू। एक घंटा स्नान के बाद भोग की बात आई, पनवाड़ी  यहां से एक हांडी चूना आया। पंडित जी के पूरे शरीर में चूना पोता गया। पुरोहित बाबा ने पंडित जी को चूना खिलाया। अब पंडित जी लगे चिल्लाने, पंडित जी जितना चिल्लाते, भक्तगण उतना खुश होते और कहते बाबा जब खुश होते हैं, तो ऐसे ही चिल्लाते हैं। बारी थी पंडित जी को चढ़ावे की। कोई आता और केले चढ़ाता तो कोई रुपए। साथ में एक प्रश्न- बाबा मेरी बेटी की शादी कब होगी, कोई कहता बाबा व्यापार में हानि हो रही। बेचारे पंडित जी करते क्या न करते, सबको कुछ ना कुछ बताते। यही करते शाम हुई, तो चढ़ावे के फल गांव में प्रसाद  के रूप में बट गए। इधर पंडित जी का भूख से बुरा हाल। जैसे-तैसे रात कटी। एक मन भागने को करता तो एक और धन का लालच रोक देता। सोचा 2 दिन रुक कर धन लेकर चंपत हो जाऊंगा। यही सब विचारते नींद खुली। आज कल से भी ज्यादा भीड़ थी। बगल के गांव के लोग जमा थे, कीचड़ की बाल्टियां भरी रखी थी। जैसे पंडित जी जागे हल्ला हुआ बाबा जाग गए, अब स्नान करेंगे। फिर शुरू हुआ कीचड़ स्नान आज तो 4 घंटे स्नान चला। गांव में तो मेला सा लगा था दुकानें सजा ली कीचड़ और चूना बेचना शुरू कर दिया। कुछ बुद्धजीवियों ने बाबा के दर्शन के लिए भक्तजनों से पैसे ऐंठने शुरू कर दिया बाबा भूख से बेहाल। चारो ओर फलों का भंडार था किंतु सब बेकार। शाम को प्रसाद बांटने के बाद पंडित जी ने चलने का आग्रह किया तो लोगों ने पैर पकड़ लिए। जब पंडित जी नहीं माने तो गांव वालों ने चार लठैत लगा दिए कि पंडित कहीं न जाएं। अब पंडित जी मरते क्या ना करते। डर से गांव वालों की बात माननी पड़ी। सोचा कुछ दिन भूखे रहकर धन कमा लूं। सातवें दिन पंचायत में निर्णय हुआ, बाबा तो सिद्ध पुरुष है, धन का मोह तो है नहीं। क्यों ना बाबा के नाम का मंदिर बना दिया जाए। सो अब चढ़ावे का सारा पैसा मंदिर के लिए दे दिया गया। अब पंडित जी की स्थिति माया मिली न राम सी हो गयी। 7 दिनों से भूखे पंडित जी को रात भर नींद ना आई। प्रातः 4:00 बजे जब देखा, गांव सो रहा है, लठैत लोग भी नदारद थे, पंडित जी लगे भागने। भागते-भागते 4 गांव पार कर गए, तब मुड़ कर देखा की कहीं कोई पीछा तो नहीं कर रहा, किसी को पीछे आता ना देख कर चैन की ली और अब पंडित जी ने गया जी जाने से सदैव के लिए तौबा कर लिया और अब उनको समझ आया कि उनकी सात पुश्तों में कभी कोई गया जी क्यों नहीं गया था।


 लेखक :- निशंक
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